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कविता

कोसल में विचारों की कमी है

श्रीकांत वर्मा


महाराज बधाई हो! महाराज की जय हो।
युद्ध नहीं हुआ -
लौट गए शत्रु।

वैसे हमारी तैयारी पूरी थी!
चार अक्षौहिणी थीं सेनाएँ,
दस सहस्र अश्व,
लगभग इतने ही हाथी।

कोई कसर न थी!
युद्ध होता भी तो
नतीजा यही होता।

न उनके पास अस्त्र थे,
न अश्व,
न हाथी,
युद्ध हो भी कैसे सकता था?
निहत्थे थे वे।

उनमें से हरेक अकेला था
और हरेक यह कहता था
प्रत्येक अकेला होता है!

जो भी हो,
जय यह आपकी है!
बधाई हो!
राजसूय पूरा हुआ,
आप चक्रवर्ती हुए -

वे सिर्फ कुछ प्रश्न छोड़ गए हैं
जैसे कि यह -

कोसल अधिक दिन नहीं टिक सकता,
कोसल में विचारों की कमी है!

 


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